Saturday 12 September 2020

मेरा मन आज उदास हो गया --3

मेरा मन आज उदास हो गया  
बैठे-बैठे तुम्हारे ख्यालों में खो गया।

तुम्हारी बदरी सी जुल्फें
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा
तुम्हारे आँचल का छूना, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारी चुहलबाजी की
यादों में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।

मेरा रूठना और तुम्हारा
कनखियों से देख कर हँसना
तुम्हारे अंतर का भोलापन, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारी आँखों के सहज
सलोनेपन में खो गया
मेरा न आज उदास हो गया।

तुम्हारे संग हँसी के कहकहे लगाना
थक कर तुम्हारी बाँहों को थामना
तुम्हारा बारिश में भीगना, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारे मृदु हाथों के स्पर्श की
अनुभूति में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।

गाँव के घर में टिचकारी से बुलाना
इशारों में ही सब कुछ समझाना
तुम्हारे मुखड़े का लंबा घूँघट, मुझे याद आ गया
मेरा मन तुम्हारे नर्म अहसासों की
सिहरन में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।

मेरा मन आज उदास हो गया
बैठे-बैठे तुम्हारे ख्यालों में खो गया।

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ख्वाब अधूरा रह गया --4

तोड़ गई वो वादा अपना, सात फेरों के संग किया,
चली गई वो स्वर्गलोक में, बीच राह में छोड़ दिया।

खुशियाँ रूठ गई जीवन की,जीवन मेरा बिखर गया,
  किश्ती डूबी मेरे जीवन की, बीच भँवर में फँस गया।

रंग उड़ा मेरे जीवन का, सपना मेरा बिखर गया,
अरमानों की नैया डूबी, बासंती मौसम रीत गया।

 किस से दिल की बात कहूँ, हमराही तो चला गया,
                                      अंतहीन है विरह वेदना, सुख का आँचल छूट गया ।                                  

जब जब मैंने याद किया, नयनों में नीर उतर आया,
ठण्डी पड़ गई मेरी साँसें, जीवन चापल्य रीत गया।

सदियों जैसा दिन लगता है, मेरा जीवन ठहर गया 
  रात गुजरती आँखों में अब, ख्वाब अधूरा रह गया। 


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Friday 11 September 2020

चाँदनी संग लौट आना तुम --5

मैं रात भर सेज सजाता रहा
    मेरी यादों में बसी रही तुम,
        अभिसार की सौगंध तुमको
             मधुऋतु संग लौट आना तुम। 

मैं रात भर फूल बिछाता रहा
     मेरी पलकों में बसी रही तुम,
           मनुहारों की सौगंध तुमको
                पुरवा के संग लौट आना तुम।

मैं रात भर दीप जलाता रहा
      मेरी सांसों में बसी रहीं तुम,
            काँपते दीप की सौगंध तुमको
                सावन संग लौटआना तुम।

मैं रात भर राह देखता रहा 
     मेरे ख्वाबों में बसी रही तुम,
          पहले प्यार की सौगंध तुमको
                चाँदनी संग लौटआना तुम।








Monday 7 September 2020

जीवन बेराग री --6

जीवन संध्या 
साथ छूटना
राहे सफर
अकेले चलना
साथ छूटा, राह भुला, मुश्किल हुई  मंजिल री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

तनहा रहना 
जुदाई सहना
घुट-घुट जीना 
टूट-टूट बिखरना 
उदासी छाई, आँखें भर आईं, मिटा अनुराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया,  जीवन बेराग री।

निष्प्राण जीवन
गमों को सहना
विरह के आँसू
अरमाँ बिखरना
साज टूटा, स्वर रूठा, अब गीत बना बेराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

विकल वेदना
जीवन में सहना
व्याकुल ह्रदय
यादों संग जीना
ख़्वाब आया, दीदार हुआ, सपना प्यारा टूटा री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

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मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है --7

जब से तुम बिछुड़ी हो मुझसे
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारे स्नेह स्पर्श से  
मेरे मन में प्यार उमड़ आता 
अधरों पर गीत मचल जाता 
अब वो स्नेह स्पर्श नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारी मुस्कराहट संग
मेरा सूर्योदय होता
मन उत्साह-उमंग से भर जाता
अब वो मुस्कान नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारी उन्मादक गंध 
मेरे मन में मादकता भरती 
दिल में भावों के फूल खिलाती 
अब वो उन्मादक गंध नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारे नयनों का दर्पण 
मेरे मन में चंचलता भरता 
आकुल प्यार मुखर हो उठता 
अब वो नयनों का संवाद नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है। 

तुम्हारी पायल की झंकार 
मेरे कानों में सरगम घोलती 
एक प्यारी सी धुन निकल आती 
अब वो पायल की झंकार नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है। 

जब से तुम बिछुड़ी हो मुझसे
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

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अपने हाथों से सजाऊँ --8

दिल करता है तुम्हें आज, रानी की तरह सजाऊँ,    
तुम्हारे माथे  पर बिंदिया, अपने हाथों से लगाऊँ। 

दिल करता है तुम्हारे हाथों में, चूड़ियाँ पहनाऊँ,  
तुम्हारे होठों पर लाली, अपने हाथों  से  लगाऊँ।

दिल करता है तुम्हारे पाँवों में, पायल पहनाऊँ,
तुम्हारे हाथों में मेंहदी, अपने हाथों से लगाऊँ।

दिल करता है तुम्हारे नाक में, नथनी पहनाऊँ,
 तुम्हारी माँग  में सिंदूर, अपने हाथों से सजाऊँ।

दिल करता है तुम्हारी बाँहों में, बाजूबंद पहनाऊँ,
तुम्हारे कानों में झुमका, अपने हाथों से लटकाऊँ। 

  दिल करता है अब मैं तुम्हें, जी भर कर प्यार करूँ,   
 तुम्हारे संगमरमरी बदन पर, प्यार के फूल सजाऊँ। 



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कहो ना ! बिन तुम --9

कितने बरस बीत गए
कितने सावन निकल गए
रीत रहा है तन-मन
याद आ रहे हैं वो दिन
जब साथ थी तुम।

गाँव का घर

माटी पुती दीवारें
गोबर लिपे आँगन
चूल्हे से उठता धुँआ 
रोटी की महक और
घूँघट में झाँकती तुम।

जाड़ों की रातें
रजाई में जग कर
धीरे-धीरे करते बातें
दूर जा कर लिखता खत
आँखें भिगोती तुम।

हिमालय की वादियाँ
गीता भवन का घाट
गंगा की ठंडी लहरें
शाम ढले बैठते नौका में
पानी उछालती तुम।

यादों में खोया
किस घर लौटूँ
          कहो ना ! बिन तुम। ......।
                                                          

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तुम्हारी आहटें आज भी जिन्दा है --10

कहाँ है वो गुलाबी चेहरा 
जिसे देख चाँद भी शर्माता है ?

कहाँ है वो काली जुल्फें
जिन्हें देख भँवरे भी गुनगुनाते हैं ?

कहाँ है वो माथे की बिंदियाँ
जिसे देख तारे भी झिलमिलाते हैं ?

कहाँ है वो शरबती आँखें
जिन्हें देख खंजन भी शर्माते हैं ?

कहाँ है वो नरम-नाजुक होंठ
जिन्हें देख गुलाब भी शर्माता है ?

कहाँ हैं वो रेशमी हथेलियाँ
जिन्हें छू मेंहदी भी सुर्ख हो जाती है ?

कहाँ है वो हसीन पाँव 
जहाँ बैठ पायल भी खनखनाती है?

मेरे मन के दर्पण पर 
तुम्हारी आहटें आज भी जिन्दा हैं। 

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बोलो क्या करूँ ? --11

तुम मुझे बिना कहे, अमरलोक चली गई।
मैं यहाँ अकेला रह गया, बोलो क्या करूँ ?
                                 
                                       जब तक साथ थी, अरमान मचलते थे।  
                                       अब तो सूना जीवन है,  बोलो क्या करूँ ?
                                     
तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी, याद आती है। 
नहीं निकलती दिल से,  बोलो क्या करूँ ?
                                           
                                           रातों में तनहा बैठा, तुम्हें याद करता हूँ। 
                                          उजाड़ गया मेरा चमन,  बोलो क्या करूँ ?
      
कैसे बुझाऊँ मैं, बिछोह की आग को। 
दिल बात नहीं मानता,  बोलो क्या करूँ ?

                                         साथ जीने-मरने का वादा  किया था तुमने।   
                                         तुम तोड़ गई अपना वादा,  बोलो क्या करूँ ? 







                                                                   


एक बार लौट आओ --12

क्या तुम्हें याद है
हम जाते थे प्रति वर्ष
हिमालय की वादियों में घूमने ?

जहाँ होते थे
कास के फूलों जैसे उड़ते बादल
सैलानी हवा से झूमते जंगल। 

दूध धुले हिमशिखर
नदियों की बहती तेज धाराएं
ढलानों पर तराशी खेतियाँ। 

सैलानी जीवन में
कितना कुछ जिया 
हम दोनों ने साथ-साथ। 

हिमालय की वादियाँ तो
आज भी वैसी ही हैं 
श्वेत बर्फ की चादर से ढकी हुई। 

मेरा मन तो आज भी
उन फिजाओं में तुम्हारे संग
घूमना चाहता है। 

उन बहारों में
तुम्हें अपनी बाँहों में
भरना चाहता है। 

एक बार लौट आओ
यूँ हमेशा के लिए भी 
क्या कोई बिछुड़ता है ?

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तन्हाई संग रात बिताए --13

नींद उचट जाती रातों में
 सुख की नींद नहीं सोया,
फिर मिलने की चाह लिए
मैं रातों  सपनों  में खोया।

                         दिल में बैठी प्रीत तुम्हारी
                       अब भी प्यार वही है तुमसे,
                         उसमें कमी न आई कोई
                            मेरा प्रेम चिरंतन तुमसे।

रूप तुम्हारा इतना सोणा
अब तक आँखें नहीं भरी,
बचपन से था संग हमारा
   बीच  राह  फूटी  गगरी।

                         याद तुम्हारी मुझे सताए 
                        बिना तुम्हारे रहा न जाए, 
                           शाम ढले तेरी यादों में 
                         तन्हाई संग रात बिताए। 

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बंद कमरे में रोया था --14

स्वर्गलोक तुम चली गई, मैं तो यहाँ अकेला था,
मेरे आँसूं किसने देखे,  मैं गम के मारे रोया था।

बिना कहे तुम चली गई, मैं तो दौड़ा आया था,
 अब मैं कहाँ ढूँढने जाऊँ, राहों से अनजाना था।

जीवन की राहों में मैंने, तुम को मीत बनाया था,
बीच राह तुम छोड़ गई, मंजिल अभी तो दूर था। 

हाय मृत्यु को दया न आई, कैसे झपटा मारा था,
 लेकर तुम को चली गई, मेरा जीवन बिखरा था।

सुख - दुःख में हम साथी थे, प्यार भरा जीवन था, 
पल भर के एक झोंके ने,सब कुछ मेरा छीना था।

बीत गई थी आधी रात, सारा जग जब सोया था,  
याद तुम्हारी कर-कर मैं,  बंद कमरे में रोया था।

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ढलते मौसम के साथ --15


काश !
तुम  जिन्दगी में 
एक बार फिर से मिलो 
किसी राह में 
किसी मोड़ के बाद में। 

और फिर से 
एक बार 
मेरी हमसफ़र बनो 
जिंदगी के बचे सफर में। 

मौसम को देख
कुछ आशाएँ 
कुछ इच्छाएँ 
उठती हैं मेरे भी दिल में। 

जैसे ठूँठ में
फूटती है कोंपलें 
 ढलते मौसम के साथ में। 
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सुकून भरी तुम्हारी यादें --16

मेरे ख्यालों में तुम हो, 
           मेरे ख़्वाबों में तुम हो,
                    मेरी भावना में तुम हो,
                            मेरी आरजू में तुम हो,  
सुकून भरी तुम्हारी यादें।

मेरी शायरी में तुम हो,
           मेरी कल्पना में तुम हो,
                  मेरी कविता में तुम हो,
                         मेरी बहारों में तुम हो,   
सुकून भरी तुम्हारी यादें।    

मेरे परिहास में तुम हो, 
          मेरे समर्पण में तुम हो, 
                 मेरी मोहब्बत में तुम हो, 
                         मेरी आराधना में तुम हो, 
सुकून भरी तुम्हारी यादें।

मेरी खुशियों में तुम हो,       
        मेरी मंजिल में तुम हो, 
                  मेरी जिंदगी में तुम हो, 
                           मेरी बंदगी में तुम हो, 
सुकून भरी तुम्हारी यादें।   

मेरी शोखियों में तुम हो,
          मेरी अदाओं में तुम हो, 
                  मेरी साँसों में तुम हो, 
                            मेरी बातों में तुम हो,  
 सुकून भरी तुम्हारी यादें।

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प्यार भरा जीवन रहा --17

एकाकी जीवन का विषाद लिए,  मैं सोचता रहा
विरह वेदना का इतना दर्द, मुझे ही क्यों हो रहा।

 रात भर आँखों से अश्रु बहे,  तकिया भीगता रहा    
सारी रैन जागते बीती, सपने चूर होते देखता रहा। 
  
जब -जब  तुम्हारी याद आई, तस्वीर देखता रहा
झूठी हँसी हँस कर, गम के दर्द को छुपाता रहा।

दिन और रात गुजरते रहे, समय बीतता रहा
  ग़मों का दर्द मुठ्ठी में दबाऐ, जीवन जीता रहा।

 कविताओं के संग, यादों का चिराग जलता रहा
आँखें बरसती रहीं, कविताओं में दर्द रिसता रहा।

        यह बात दीगर कि हमारा, उम्र भर साथ नहीं रहा       
   मगर  जब तक  साथ रहा,  प्यार भरा  जीवन रहा।


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Sunday 6 September 2020

तुम्हारा शुक्रिया --18 A

तुम्हारे संग 
बिताये लम्हों की यादें
आज भी मेरी गलबहियाँ लेती हैं। 

तुम्हारा हँसना 
तुम्हारा मुस्कराना 
और तुम्हारी अदाएँ 
आज भी दिल को शुकून देती हैं। 

मैं चाहता हूँ
तुम्हारी यादों को 
कविता और गीतों के 
माध्यम से सहेज कर रखूँ। 

ताकि पराजगत में 
जब तुम मुझे 
मिलो किसी मोड़ पर  
मैं इनकी बंदनवार सजादूँ । 

और घुटनों के बल झुक 
अदा करूं तुम्हारा शुक्रिया 
उन पलों के लिए
जो पल तुमने मेरे नाम किये । 

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अपनी प्रेम कहानी --19

इश्क तड़प मेरा रोया, बहता आँखों से पानी
बिना तुम्हारे कैसे रहूँगा, मेरे सपनों की रानी।

                      यादों की मैं क्या बतलाऊँ,  हर पल आए हिचकी
                      नजर लगी है मेरे प्यार को, मैं नहीं जानू किसकी।

दूध मिश्री की तरह घुली थी,अपनी प्रेम कहानी
बीच राह तुम चली गई, जैसे बादल बरसे पानी।

                           नींद नहीं आती है मुझ को, याद तेरी तरसाती
                           रोज मेरे सपनों में आकर, तेरी तस्वीर बनाती।

छोड़ गईं तुम झाँझर बेला,  किसे कहूँ अपनी बीती
जीवन में सब सुख हो कर भी,  प्रेम की गागर रीती।

                                 पिया सोमरस संग तुम्हारे, आज हाथ मेरे पानी                    
                                 मेरे जीवन का अब सम्बल, अपनी प्रेम कहानी।   

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और तुम आ जाओ --20

घनघोर घटा हो
रिमझिम बरसात हो
मेरा मन भीगने का हो
और तुम आ जाओ।

चाँदनी रात हो
गंगा का घाट हो
किनारे नौका बँधी हो
और तुम आ जाओ।

मंजिल दूर हो
पांव थक कर चूर हो
कोई हमसफ़र न हो 
और तुम आ जाओ।

आँखों में नींद हो
ख्वाबों में तुम हो
सपने का टूटना हो
और तुम आ जाओ।

मौसमें बहार हो
मिलने की चाहत हो
नजरें राहों में बिछी हों 
और तुम आ जाओ।

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वह खुशनुमा सफर --21

वह चली गई चाँद-सितारों के देश में,
अब उसके पास सन्देश नहीं पहुँचेगा।

                                    उसके जाने के बाद नहीं आई खबर, 
                                    सफर कैसा रहा अब कौन बताएगा। 

वह बैठी रहती मैं उसे निहारता रहता,             
अब मेरा चाँद धरती पर नहीं उतरेगा।  

                                     वह सुनती थी मेरी दुःख -सुख की बातें,
                                     अब कौन पास बैठ मेरे मन की सुनेगा। 
       
उसके संग - सफर में पूरी दुनिया घूमा, 
अब इस जीवन में कौन मेरा साथ देगा।

                                      खुशियों का जीवन जिया मैंने उसके संग,
                                      वह  खुशनुमा  सफर तो सदा याद रहेगा।

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काश तुम आकर --22 A

।  



काश तुम आकर  
मेरे जीवन के पतझड़ में
बसन्तोत्सव मना जाओ।

काश तुम आकर
मेरी वीरान जिन्दगी में
प्यार की दस्तक दे जाओ।

काश तुम आकर
मेरे तन्हाई के जीवन में
हमसफ़र बन जाओ।

काश तुम आकर
मेरे बिखरते जीवन को
थोड़ा सम्बल दे जाओ।

काश तुम आकर
मेरी उदास शाम को
थोड़ा शकून दे जाओ।

काश तुम आकर 
मेरे प्यार भरे गीतों को 
अपना स्वर दे जाओ। 

काश तुम आ कर
मेरे जीवन के सपनों को
साकार कर जाओ।

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तुम्हारा इन्तजार --23

आज भी दर्पण पर 
लगी बिंदिया करती है 
तुम्हारा इन्तजार 
भाल पर सजने को। 

आज भी ड्रेसिंग पर 
रखी चूड़ियाँ करती हैं 
तुम्हारा इन्तजार
हाथों में मचलने को। 

आज भी छत पर बैठे
पक्षी करते हैं
तुम्हारा इन्तजार 
दाना-पानी लेने को। 

आज भी तुलसी का
बिरवा करता है
तुम्हारा इन्तजार
दिया-बाती जलाने को। 

आज भी दरवाजे पर 
खड़ी गाय करती है 
तुम्हारा इन्तजार
गुड़-रोटी खाने को। 

आज भी पार्क की 
पगडण्डी करती है
तुम्हारा इन्तजार
साथ-साथ चलने को। 
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मैं कैसे सो जाऊँ --24

कभी भी चली आती है, तुम्हारी यादें
वापिस जाती नहीं, मैं कैसे सो जाऊँ

                                मेरा साथ देने, सितारे जगते रात भर
                                 वो जगते मेरे लिए, मैं कैसे सो जाऊँ

मेरी पलकों में छाई, यादों की बदली
वह छलकती रहती, मैं कैसे सो जाऊँ।

                                बहुत याद आते हैं, साथ बिताऐ लम्हें 
                                 नयन देखते हैं राहें, मैं कैसे सो जाऊँ

पचास वर्ष का, संग - सफर था हमारा
याद आती है तुम्हारी, मैं कैसे सो जाऊँ।

                               सपने में देखा, तुम बदल रही करवटें  
                              तुम्हें नींद नहीं आती, मैं कैसे सो जाऊँ।

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Saturday 5 September 2020

तुम तो आज भी मेरे संग हो --25

तुम मेरी छुट्टी की सुबह हो,
         तुम मेरी भोर की अंगड़ाई हो,
                  तुम मेरी चाय की मिठास हो,
                           तुम मेरे होठों की प्यास हो, 
                                  तुम तो आज भी मेरे संग हो।

तुम मेरी बैचेनी का सुकून हो,
        तुम मेरे दिल की धड़कन हो,
               तुम मेरे प्यार की गज़ल हो, 
                      तुम मेरी अनमिट परछाईं हो,           
                               तुम तो आज भी मेरे संग हो।

तुम मेरे लबों की मुस्कान हो, 
        तुम मेरे दिल का अरमान हो,
               तुम मेरी यादों की चाहत हो, 
                        तुम मेरे सपनों की रानी हो, 
                               तुम तो आज भी मेरे संग हो।

तुम मेरे जीवन का संगीत हो, 
        तुम मेरी कविता का छंद हो,
                तुम मेरे दिल की आवाज़ हो,
                        तुम मेरे प्यार की पनाह हो, 
                                 तुम तो आज भी मेरे संग हो।

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चलो भीगते हैं --26

कलकत्ते में 

आ गया मानसून 

सुबह से झमाझम 

पानी बरस रहा है। 


वर्षा की फ़ुहारों संग 

बरसने लगी है 

तुम्हारी यादें भी। 


बरसात आते ही 

तुम सदा मेरा 

हाथ पकड़ कहती 

चलो भीगते हैं।  


हर बारिश में 

तुम भीगने ले जाती 

मुझे अपने साथ। 


बारिश की बूंदों में तो 

आज भी वही ताजगी 

और शरारत है। 


मगर आज तुम नहीं हो 

अब कौन कहेगा मुझे 

चलो भीगते हैं। 


काश !

तुम आज मेरे साथ होती 

और हाथ पकड़ कहती

चलो भीगते हैं। 

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यादों का वृन्दावन --27

मैं तुम्हें जितना ज्यादा
याद करता हूँ,
मेरा दुःख उतना ही
ज्यादा बढ़ता जा रहा है। 

मैं चाहता हूँ
तुम्हें याद करना छोड़ दूँ,
जिससे मेरा दुःख कुछ
कम हो जाए। 

लेकिन जितना कम
याद करता हूँ,
उतनी ही ज्यादा
याद आने लगती  हो। 

समझ में नहीं आ रहा
कि मैं क्या करूँ,
कैसे इस दर्द से
छुटकारा पाऊँ। 

जिंदगी में हर किसी ने
याद करना सिखाया,
भूलना कैसे है यह
किसी ने नहीं सिखाया। 

दिल भी बड़ा नादान है
जीवन के सफर में केवल,
यादों के वृन्दावन में ही 
विचरना चाहता है। 

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मैंने सौगात में तुम्हें --28


मैंने सौगात में तुम्हें
 अंजुरी भर जल दिया 
तुमने मुझे पूरा सागर 
दे दिया। 

मैंने सौगात में तुम्हें
कुछ तारे दिए 
तुमने मुझे पूरा आकाश 
दे दिया। 

मैंने सौगात में तुम्हें
कुछ दिशाएँ  दी 
तुमने मुझे पूरा ब्रह्मांड 
दे दिया। 

मैंने सौगात में तुम्हें 
कुछ बूँदें दी 
तुमने मुझे पूरा सावन 
दे दिया। 

मैंने सौगात में तुम्हें
कुछ फूल दिए
तुमने मुझे पूरा उपवन
दे दिया। 

मैंने सौगात में तुम्हें
चुटकी भर सिंदूर दिया
तुमने मुझे पूरा जीवन
दे दिया।

ok 







एक कहानी का अन्त --29

तुम्हारे जाने के बाद 
सब कुछ सूना- सूना 
लग रहा है, 
जीवन भी अब तो 
मौत से बदतर लग रहा है। 

तुम थी तो जिंदगी
भोर की लालिमा लगती थी, 
लेकिन अब तो साँझ की
कालिमा लगती है। 

अब तो घुटन
तड़पन
उदासी
अकेलापन
यही रह गया है जीवन में। 

मेरे जीवन में अब
सुख का सावन 
कभी नहीं आएगा। 

जीवन की साँझ का 
अब कोई नया सवेरा 
नहीं होगा। 

सुहाने सफर में 
संग चलते-चलते 
बीच राह तुमने मेरी 
कहानी का अंत कर दिया। 

ok






पोल्की की अँगूठी --32 A

खेत के रास्ते में
पोल्की* को तोड़
तुमने एक अँगूठी  बना
मुझे पहनाई थी।

वह अँगूठी 
आज भी मेरी
अनामिका में हरी है।

तुम्हारे जाने के बाद
मैंने उसे अपने
आँसुओं से सींचा है।

उसकी जड़ें
मेरे दिल तक
चली गई हैं।

उसकी जड़ों ने
बाँध दिया है
मेरी आत्मा को।

जन्म-जन्मांतर 
के अमर प्रेम सूत्र में 
तुम्हारे संग।

ok


*राजस्थान के खेतों में पाई जाने वाली एक नरम घास। 


मधुमासी जीवन का अन्त --33

कल शाम
अचानक धर्मपत्नी का
स्वर्गवास हो गया। 

रात भर प्रभु कीर्तन चला
सुबह होते ही उठाने का
काम शुरू हो गया। 

नहला कर
नई साड़ी पहनाई गई
माँग में सिंदूर भरा गया। 

अर्थी को फूलों से सजा कर
ऊपर रामनामी चद्दर को
ओढ़ाया गया। 

राम नाम सत्य का
उच्चारण करते हुए अर्थी को
श्मशान घाट लाया गया। 

देह को चिता पर रख
घी, नारियल, चन्दन
आदि रखा गया। 

बेटे द्वारा मुखाग्नि देकर
अंतिम रश्म को 
पूरा किया गया।  

मेरे अरमानों की चिता जलने लगी 
और मेरे मधुमासी जीवन का अन्त
मेरी नज़रों के सामने हो गया। 

ok 

तभी धड़कनें बढ़ती हैं

यदि जोश है उमंग है, तो कायनात तुम्हारी है। 
जिन्दादिली के आभाव में, जीना भी बेकार है।। 

प्यार अंधा प्यार गूंगा और प्यार बहरा होता है। 
शोख़ उमर क्या-क्या कर बैठे कौन जानता है।। 

बचपन की उम्र तो, शोखियों में निकल जाती है। 
जवानी की गाँठ लगते ही, चाल बदल जाती है।।  

चाहे जितने दुःख आए, जिंदगी नहीं रुकती है। 
जवानियाँ आती रहती है, और जाती रहती है।। 

आँखों में हैं स्वप्न मेरे, यादों में कविता ढलती है। 
कहीं दूर से आती आवाज़, जैसे अभी बुलाती है।। 

जब भी बिजली कड़कती है, हिचकी आती है। 
बात कुछ तो है कहीं, तभी धड़कनें बढ़ती हैं।।