Sunday 6 September 2020

तुम्हारा इन्तजार --23

आज भी दर्पण पर 
लगी बिंदिया करती है 
तुम्हारा इन्तजार 
भाल पर सजने को। 

आज भी ड्रेसिंग पर 
रखी चूड़ियाँ करती हैं 
तुम्हारा इन्तजार
हाथों में मचलने को। 

आज भी छत पर बैठे
पक्षी करते हैं
तुम्हारा इन्तजार 
दाना-पानी लेने को। 

आज भी तुलसी का
बिरवा करता है
तुम्हारा इन्तजार
दिया-बाती जलाने को। 

आज भी दरवाजे पर 
खड़ी गाय करती है 
तुम्हारा इन्तजार
गुड़-रोटी खाने को। 

आज भी पार्क की 
पगडण्डी करती है
तुम्हारा इन्तजार
साथ-साथ चलने को। 
ok 









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