Monday 7 September 2020

तुम्हारी आहटें आज भी जिन्दा है --10

कहाँ है वो गुलाबी चेहरा 
जिसे देख चाँद भी शर्माता है ?

कहाँ है वो काली जुल्फें
जिन्हें देख भँवरे भी गुनगुनाते हैं ?

कहाँ है वो माथे की बिंदियाँ
जिसे देख तारे भी झिलमिलाते हैं ?

कहाँ है वो शरबती आँखें
जिन्हें देख खंजन भी शर्माते हैं ?

कहाँ है वो नरम-नाजुक होंठ
जिन्हें देख गुलाब भी शर्माता है ?

कहाँ हैं वो रेशमी हथेलियाँ
जिन्हें छू मेंहदी भी सुर्ख हो जाती है ?

कहाँ है वो हसीन पाँव 
जहाँ बैठ पायल भी खनखनाती है?

मेरे मन के दर्पण पर 
तुम्हारी आहटें आज भी जिन्दा हैं। 

ok

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