Saturday 5 September 2020

ओ मेरी सहृदय ! --36

एक, दो, तीन नहीं
पूरे छः साल हो गए तुम्हें बिछुड़े हुए
उस दिन के बाद आज तक 
नहीं देखा तुम्हारा चेहरा। 

लगी है तुम्हारे साथ की
एक तस्वीर कमरे में
   सोचता हूँ कभी 
   हम भी साथ थे। 

कितना मधुर जीवन था 
दिलों में रहता 
एक दूजे के प्रति प्यार 
और अनुराग। 

दो धड़कनों ने 
एक सुर में गीत गाया था 
जीवन उस राग की 
मधु लहरियों में खो गया था। 

आज मैं अकेला हूँ 
जीवन तो जीना पड़ेगा 
मगर नयनों में नीर भर 
अब पीर को भी गाना पड़ेगा। 

प्रतिबद्धता की यह कविता 
तुम्हीं को समर्पित है 
ओ मेरी सहृदय ! 

ok 







No comments:

Post a Comment