Friday 5 March 2021

यही है संसार

पिता ने पौध को 
माली की तरह पाल पोस 
बड़ा किया था

कल्पना की थी
ठंडी छाँव और मीठे
फलों की

पेड़ों की
धमनियों में डाला था
अपना रक्त और जड़ों में
सींचा था अपना पसीना

लेकिन पेड़ों के
बड़े होते ही उनकी साँसों में
बहने लगी जमाने की हवा

अब पेड़ों की छाँव
वहाँ नहीं पड़ती जहाँ
पिता बैठता है 

मीठे फलों की जगह
पिता को चखना पड़ता है
कड़वे फलों का स्वाद

जब तब
लगती है मन को ठेस
सिमटते रहते हैं पिता

लाचार
हो जाता है बुढ़ापा
जवान बेटों के आगे

मन में दुःख होता है
पर कह नहीं सकते
किसी को

दीवार पर लगी पत्नी की 
तस्वीर देख कहते हैं  
पगली ! यही है संसार

उभर आता है
एक तारा आकाश में
सिहर उठता है बेबसी पर।



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