मेरे पोते-पोतियाँ
अब बड़े हो गये हैं
वो कॉलेजों में पढ़ते हैं।
अब वो मुझे कहानी सुनाने
अब वो मुझे कहानी सुनाने
बाहर घुमाने ले जाने या
कागज़ की नाव बनाने
कागज़ की नाव बनाने
की जिद्द नहीं करते।
अब वो मुझे कहते हैं
चलिए दादा जी आइस्क्रीम
खाकर आते हैं।
मेरे मना करने पर कहते हैं
ठीक है फिर कल आपके साथ
ठीक है फिर कल आपके साथ
स्टारबक्स में कॉफी पीकर आते हैं।
व्यस्त हो कर भी
वो मेरे लिए समय
निकाल लेते हैं।
वो मेरा ख्याल रखते हैं
मेरी जरूरतों को भी
समझते हैं।
शाम ढले मेरे पास बैठ
मेरी यादों की पिटारी
खोल लेते हैं।
बातों ही बातों में
वो मेरे बचपन को
ढूँढ लाते हैं।
और मुझे मेरे बचपन की
सौगात एक बार फिर से
देकर चले जाते हैं।
OK
वो मेरे बचपन को
ढूँढ लाते हैं।
और मुझे मेरे बचपन की
सौगात एक बार फिर से
देकर चले जाते हैं।
OK
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