कल-कल करती बहती गंगा,
सुन्दर हिमगिरि की शाखाएँ,
रजत सुमन लहरें बिखराएँ,
तरल तरंगित नाद सुनाएँ,
निर्मल गंगा की ये लहरें,
अमृत मय, पय पान कराएँ,
सुन्दर पक्षी कलरव करते,
मन को मोहें धवल धाराएँ,
श्यामल बादल शिखर चूमते,
हरा आँचल वसुधा लहराएँ,
तपोभूमि ऋषि-मुनियों की,
गूँजें यहाँ पर वेद- ऋचाएँ,
नीलकंठ महादेव बिराजे,
मोहक स्वर्गाश्रम की छटाएँ।
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