Tuesday 30 March 2021

शुभानुशंसा

माताजी थी भंवरी देवी,
पिताजी सेठ पुसराज। 
सोलह फ़रवरी  १९४७, 
घर में जन्में युवराज।।

नामकरण उनका हुवा,
भागीरथ प्रसाद। 
जैसी वंश -परम्परा,
वैसी ही मर्याद।। 

बीस मई १९६४ को,
जब हुआ विवाह। 
सुशीला के स्वजन सभी, 
कह उठे वाह ! वाह !

अगरतला रह कर किया,
पटसन का व्यापार।
तिलहन का धन्धा किया,
लीचीनगर बिहार ।।  

हरियाणा में शुरू किया,
सेरामिक्स का काम। 
कोलकाता में आढ़ती,
बने कमाया नाम ।। 

बड़े श्यामसुंदर सुवन 
दुजे राजकुमार। 
नीलकमल थे तीसरे,
चौथे मनीषकुमार। 

बहुऍं क्रमशः शशिकला,
रश्मि व पूनम और।  
चौथी राजश्री सुता, 
जैसी सब शिरमौर।। 

देकर के परिवार को,
हुई शुशीला मौन। 
घरवाली बिन गेह को,
भला सम्हाले कौन ।। 

अर्द्धागिनी-वियोग से,
मन में हाहाकार। 
ऐसा हुआ कि बह चले,
कविता-स्रोत अपार ।। 

संकट मोचन नाम तिहारो,
कुमकुम के छींटे। 
एक नया सफर के बाद,
कुछ अनकही भी लिखे ।। 

रचियता डॉ० श्री मदनलाल वर्मा "क्रान्त "
होलिकोपरान्त  दुलहन्डी  विकर्मी संवत २०७७ 

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