सदियों से पुरुष नारी को
भोग्या के रूप में भोगते रहे,
पुरुष प्रधान समाज में नारी
देह-दैहिक आनंद देती रही।
देवता उसे रम्भा, उर्वशी, मेनका
तिलोत्तमा के रूप में भोगते रहे,
नारी अप्सरा बन केवल
नृत्य ही करती रही।
ऋषि- मुनि उसे घृताची,
मेनका के रूप में भोगते रहे,
नारी सम्मान की पात्रता के लिए
सदा तरसती ही रही।
राजा-महाराजा उर्वशी, शकुंतला
माधवी के रूप में भोगते रहे,
नारी सदा गरिमामयी प्रतिष्ठा
के लिए प्यासी ही रही।
रईस -रसूल वाले गणिका,आम्रपाली
नगरवधू के रूप में भोगते रहे,
नारी सदा आदर्श पत्नी बनने
के लिए तड़पती ही रही।
धर्म के नाम पर देवदासी, रुद्रगणिका
रूपाजिवा के रूप में भोगते रहे,
नारी सदा जीने के भ्रम में
बार-बार मरती ही रही।
ok
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