वेदियाँ सजाते रहे
हवन करते रहे
तिलक लगाते रहे
भंडारा करते रहे
मगर अंतस का
परिवर्तन नहीं कर सके।
तीर्थों में घूमते रहे
श्रृंगार कराते रहे
दर्शन करते रहे
प्रसाद लेते रहे
मगर जीवन से
राग-द्वेष को नहीं छोड़ सके।
व्याख्यान सुनते रहे
जयकारा लगाते रहे
माला फेरते रहे
कीर्तन करते रहे
मगर अहं का
अवरोध नहीं हटा सके।
मंदिरों में जाते रहे
आरतियाँ करते रहे
घंटियाँ बजाते रहे
चरणामृत लेते रहे
मगर भोग का
चिंतन नहीं छोड़ सके।
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