Saturday 27 March 2021

भोग का चिंतन नहीं छोड़ सके

वेदियाँ सजाते रहे 
हवन करते रहे 
तिलक लगाते रहे 
भंडारा करते रहे 
मगर अंतस का 
परिवर्तन नहीं कर सके। 

तीर्थों में घूमते रहे 
श्रृंगार कराते रहे 
दर्शन करते रहे 
प्रसाद लेते रहे  
मगर जीवन से 
राग-द्वेष को नहीं छोड़ सके। 
 
व्याख्यान सुनते रहे 
जयकारा लगाते रहे 
माला फेरते रहे 
कीर्तन करते रहे 
मगर अहं का 
अवरोध नहीं हटा सके। 

मंदिरों में जाते रहे 
आरतियाँ करते रहे 
घंटियाँ बजाते रहे 
चरणामृत लेते रहे 
मगर भोग का 
चिंतन नहीं छोड़ सके।  



No comments:

Post a Comment