बहुत याद आता है, मुझको मेरा गाँव
कुँआँ वाले पीपल की, ठंडी-ठंडी छाँव।
सोने जैसी माटी, जहाँ हरे-भरे खेत
बहुत याद आती है, धोरा वाली रेत।
खेतों में छाँव करते, खेजड़ी के पेड़
हरे-हरे पत्तों को, चरती बकरी भेड़।
पशुओं का घर आना, गोधूलि की बेला
बच्चों का खेलना, लुका छिपी का खेला।
खुला - खुला आसमाँ, तारों भरी रात
चाँद की चाँदनी में, करते मीठी बात।
सावन में झूला झूलते, फागुन में होली
याद आती है मुझको, गाँव की दिवाली।
गणगौर के मेले में, बैलों का दौड़ना
औरतों का गीतों संग, गणगौर पूजना।
कुऐ का ठंडा - ठंडा, अमृत जैसा पानी
रात को अलाव पर, सुनते रोज कहानी।
बहुत याद आता है, मुझको मेरा गाँव
कुँआँ वाले पीपल की, ठंडी-ठंडी छाँव।
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