Thursday 4 March 2021

गर्व कर सके अपने पुरखों पर -- 82

तब नहीं चलती थी गाँवों में बसें
पुरखे चले जाते थे पैदल
दस बीस कोस की यात्रा में। 

मुँह -अँधेरे ही 
निकल पड़ते थे घर से
बाँध प्याज और रोटी कमर में। 

राह चलते करवा देते काम
निकलवा देते किसी की बाजरी 
बंधवा देते किसी का झोंपड़ा
नहीं पड़ती शिकन माथे में। 

गाँव की बेटी को समझते
घर की बेटी की तरह
नहीं खाते रोटी, नहीं पीते पानी
गाँव की बेटी के ससुराल में। 

आजादी की लड़ाई में
भले ही उन पुरखों का नाम
नहीं लिखा गया हो
मगर उन्होंने सोना उपजाया था
बंजर धरती में। 

आने वाली पीढ़ी
गर्व कर सके अपने पुरखों पर 
मैं बचाये रखना चाहता हूँ
उनकी स्मृति को
इतिहास के पन्नों में। 





  

No comments:

Post a Comment