मौसम ने
जाती हुयी सर्दी के हाथों
केशरिया फूलों से लिख भेजानिमंत्रण पत्र बसंत को।
गुनगुनी धूप ने
चुपके से पढ़ लिया खत
और उतर आई धरती पर
अगुवाने बसंत को।
कोयल कूक उठी
महुए की डाली मचल उठी
नई कोंपलें खिलने लगी
आया देख बसंत को।
टेसू के फूल खिल उठे
आमों के बौर मचल उठे
सरसों भी गमकने लगी
आया देख बसंत को।
गौरया चहक उठी
मीठी धूप खिल उठी
बसंती बयार बहने लगी
आया देख बसंत को।
सुप्त सपने सज उठे
दिलों में फूल खिल उठे
शाम सुहानी होने लगी
आया देख बसंत को।
ok
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