Friday 5 March 2021

फिर क्यों अपनापन बांटा

बचपन कितना सुन्दर था, ढेरों प्यार जताते थे, 
बड़े हुए सब भूल गए, आपस में मन को बाँटा।

 अहम का औजार बनाया, भाई ने भाई को बाँटा, 
  नहीं किसी ने दर्द को बांटा, केवल सन्नाटा बाँटा।

हाथों से खाना सिखलाया,  बाँहों में झूला  झुलवाया,
उसी बाप की नजरों के संग, घर के चूल्हे को बाँटा

आँखें फेरी, लहजा बदला, घर की इज्जत को बाँटा, 
चौखट भी उदास हो गई, घर के आँगन  को बाँटा।

प्यार-मुहब्बत भाई जैसा, और कहाँ तुम पाओगे,
जन्नत है भाई का रिश्ता, उसको भी तुमने  बाँटा।  

                                                    कहना सुनना गृहस्थी में, चलता ही तो रहता है,                                                       छोटी -छोटी बातों पर, तुमने घर को क्यों बाँटा। 

धन-दौलत, जमीं-जायदाद, सभी छोड़ कर जाओगे,
साथ नहीं जाएगी कौड़ी, फिर क्यों अपनापन बाँटा


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